Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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राजा श्रीपाल ]
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सहायता पहुंचा सके । वह मनुष्य यदि चतुर न हो, तो विद्या की साधना टीक हो नहीं सकती, अतः उसने श्रीपाल से अपने पास रहने की प्रार्थना की। श्रीपाल वहाँ कुछ दिन ठहर गये जिससे उस मनुप्य की वह विद्या सिद्ध हो गई । इससे प्रसन्न होकर उस मनुष्य ने श्रीपाल को दो विद्यायें सिखलाई । एक के होने पर मनुष्य पानी में नहीं डूबता और दूसरे के प्रभाव से शरीर पर किसी हथियार की चोट नहीं लगती।
श्रीपाल कुमार यहाँ से भी चल दिये। चलते-चलते वे भडौंच के बन्दरगाह पर पहुँचे। वहाँ धवल सेठ नामक एक जबरदस्त व्यापारी पांच सौ जहाजों में माल भरकर विदेश यात्रा को जाने के लिये तैयार थीं। श्रीपाल को दूसरे देश में भ्रमण करने की इच्छा थी। अतः सौ सुवर्ण मुहरें प्रतिमास किराया देने की शर्त करके वे जहाज में बैठ गये । वायु के अनुकूल होने पर जहाज चल दिये।
___ जहाज में विशेषज्ञ लोग बैठे नवशे और कितावें देखते हैं, नाविक लोग अपनी पतवारें चलाते हैं, ध्रुवतारा देखते हैं, निशान पहिचानने वाले पानी की गहराई नापते हैं. कुली लोग माल जमाजमा कर रखते हैं हवा के जानने वाले हवा की गति देखते हैं, पहरा देने वाले पहरा देते हैं, पाल वाले पाल और उसकी डोरियां सँभालते हैं, हलकारे लोग दौड़-दौड़ कर सब काम-काज करते हैं और जहाज बीच समुद्र में चले जा रहे हैं।
__ इतने ही में एक हवा का जानने वाला बोला, 'सेठजी ! पवन धीरे-धीरे बहतो है और सामने ही बब्बरकोट नामक बन्दरगाह दिखाई दे रहा है। वहां थोड़ी देर के लिये जहाजों के लंगर डलवा दीजिये, तो जिन्हें मीठा पानी और ईधन लेना हो, वे ले लें। धवल
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