Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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जम्बूस्वामी ]
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राजगृही-मगरी से थोड़ी दूर पर एक बरगद का झाड़ था, जिसकी छाया अत्यन्त सघन थी इस बरगद के झाड के नीचे हद दर्जे की बदमासों चोर आदि का संगठन होता था। शाम होते ही, उसके नीचे एक के बाद एक मनुष्य आने लगे । इन सबने, अपने मह पर नकाब पहिन रखे थे और अपने शरीर पर खाकी रंग के कपड़े ओढ़ रखे थे।
इन सब में एक विशालकाय जवान था, जिसके नेत्र बड़े-बड़े तथा लाल एवं चेहरा मह डरावना था। सब मनुष्यों के इकट्ठे हो जाने पर वह बोला-"दोस्तो ! आजतक हम लोगों ने बहुत सी चोरियां की हैं। किन्तु जितनी चाहिये उतनी सफलता कभी नहीं मिली। आज मैं एक जबरदस्त मौका देख आया हूँ।"
राजगृही नगरी के ऋषभदत्त सेठ के पुत्र जम्बूकुमार के विवाह में आये हुए धन का ढेर लगा है यदि हम लोग अच्छी तरह हाथ मारेंगे तो जब तक जीयेंगे, तब तक चोरी करनी ही न पड़ेगी। इसलिये आज अच्छी तरह तैयार रहना।"
सब बोल उठे-"हम तैयार हैं । हम तैयार हैं । आपको जैसी आज्ञा होगी। वैसे करने को हम सदैव तैयार हैं।
इस बड़े भारी डीलडोल वाले मनुष्य का नाम था-प्रभव । असल में वह एक राजा का पुत्र था। किन्तु बाप ने छोटे भाई को गद्दी दी, अतः वह नाराज होकर घर से निकल गया और चौरीडाका आदि का पेशा करने लगा। वह इतना जबर्दस्त हो गया, कि उसका नाम सुनते ही मनुष्यों के होश उड़ जाते थे । वह अपने ५०० साथियों को लेकर तैयार हुआ। और अन्धेरा होते ही शहर में दाखिल हो गया। चलते-चलते वहां जम्बूकुमार के मकान के
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