Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह राजकुमार ने विचारा, यह भेड़ा बहुत अच्छा है । इस भेड़े को ले लेवें, बहुत जीत होगो, इसलिये इसे खरीद लें। इस प्रकार विचार कर राजकुमार ने धन्ना से कहा-“सेठ, भेड़ा बेचना है।" धन्ना ने उत्तर दिया "हाँ, पर इसकी कीमत बहुत है।" राजकुमार ने पूछा कि “कीमत कितनी है ?" धन्ना ने कहा-"सवालाख सोने की मुहरें" राजकुमार बोला-"ये सवालाख मुहरें लो और यह भेड़ा मुझे दे दो।" धन्ना ने भेड़ा राजकुमार को देकर सवालाख सोने की मुहरें ले लीं।
धन्ना, कैसा भाग्यवान था, कि उसे अढ़ाईलाख सोने की मुहरें मिल गई। उसके बड़े भाई बहुत दौड़े, लेकिन किस्मत के फूटे थे। उन्हें कोई आमदनी नहीं हुई। चारों भाई घर आये । सब लोग धन्ना की बड़ाई करने लगे । धन्ना की बड़ाई सुनकर उन तीनों भाइयों के मुंह उतर गये । वे कहने लगे, कि "धन्ना ने तो जूआ खेला था । शर्त लगाना जूआ ही कहलाता है। जूआ खेला था, उसमें कभी हार गया होता तो क्या दशा होती ? जुआ खेलना व्यापार नहीं कहलाता, व्यापार में धन्ना की परीक्षा करो।"
धनसार सेठ ने अपने बड़े लड़कों से कहा “लड़को ! पागल मत बनो। किसो को अच्छा देखकर प्रसन्न होना चाहिये। उससे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिये। पिता की बात सुनकर तीनों लड़कों ने उत्तर दिया" अच्छा, हम तीनों तो बेवकूफ हैं और आपका एक धन्ना ही समझदार है।
सज्जन, संबंधी, जाति-न्याति में धन्ना की खूब बड़ाई होती थी। धन्ना के तीनों बड़े भाइयों से धन्ना की बड़ाई सही न जाती। वे सदा ही कुढ़ा करते।
सेठ ने सोचा कि लाओ, एक बार फिर इन सब की परीक्षा
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