Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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'बुद्धिनिधान अभयकुमार]
[ ४ उन्होंने उस मनुष्य को तत्क्षण गिरफ्तार करा दिया । अन्त में उस मनुष्य ने भी स्वीकार कर लिया, कि मैं ही आम चुराने वाला हूँ।'
(६) एकबार उज्जैन के राजा चंडप्रद्योत ने राजगृही पर बड़े जोर से चढ़ाई की । अभयकुार ने विचारा, कि-"इसके साथ लड़ाई करने में कोई लाभ नहीं है । दोनों तरफ के लाखों मनुष्य मरेंगे, फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि जीत किसकी होगी? इसलिये यही उचित है, कि किसी तरकीब से काम लिया जावे।" उन्होंने घड़ों में सोने की मुहरें भरवाई और उन्हें चुपके से शत्रु की छावनी में गढ़वादीं। उसके बाद, दूसरे दिन उन्होंने चंडप्रद्योत को एक पत्र लिखा-"पूज्य मौसाजी को मालूम हो कि मुझे आपका प्रेम एक क्षण भी नहीं भूलता। अभी आप पर एक बहुत बड़ी आफत आने वाली है, यही कारण है, कि उससे होशियार रहने के लिए मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। मेरे पिताजी ने बहुत सा धन देकर, आपकी सेना को अपनी तरफ फोड़ लिया है। यदि आप जांच करेंगे तो शेष सब बातें भी आपको मालूम हो जावेंगी।
___ चंडप्रद्योत ने अपनी छावनी में जाँच की, तो वहां उन्हें सोने की मुहरों से भरे हुए घड़े मिले । यह देखकर उन्हें विश्वास हो गया कि अभयकुमार का लिखना सत्य है, उन्होंने तत्क्षण अपनी सेना को वापिस लौटने का हुक्म दे दिया।
चंडप्रद्योत को थोड़े दिनों के बाद मालूम हुआ, कि अभयकुमार ने मुझे धोखा दिया है उन्हें तो बड़ा क्रोध हो आया। उन्होंने अपनी सभा में पूछा-"क्या तुम लोगों में कोई ऐसा बहादुर है, जो अभयकुमार को जीवित पकड़ कर ला सके ? यह सुनकर एक वेश्या
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