Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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बुद्धिनिधान अभ रकुमार ]
[ ५१ ___थोड़ी देर के बाद, जब अभयकुमार की बेहोशी दूर हो गई तो उन्होंने अपने आप को कैदो की दशा में पाया। वे उसी क्षण समझ गये, कि धर्म का ढोंग रचकर इस ठगिनो ने मुझे धोखा दिया है ।
उस वैश्या ने उज्जैन पहुंच कर अभयकुमार को चंडप्रद्योत के सामने हाजिर किया। चंडप्रद्योत ने उन्हें कैद कर लिया।
राजा चंडप्रद्योत के यहाँ अनलगिरि नामक एक सुन्दर हाथी था। वह हाथी, एक बार पागल हो गया। चंडप्रद्यो। ने अनेकों उपाय किये, किन्तु हाथी वश में नहीं आया। अब. क्या करें ? विचार करते-करते, राजा को अभय कुमार याद आये, अतः उन्हें बुलाकर पूछा- "अभयकुमार ! अनलगिरी को वश में करने का कोई उपाय तो बताओ।" . अभयकुमार ने कहा-"आपके यहाँ, उदयन नामक एक राजा कैद है। उसकी गायन विद्या बड़ी विचित्र है । यदि आप उससे गायन करवावें तो उस गायन को सुनकर हाथो वश में आ जायगा। "राजा ने ऐसा ही किया, जिससे वह हाथी वश में होगया। इस कारण, राजा बहुत प्रसन्न हुए।" उन्होंने कहा -'अभय कुमार जेल से छूटने के अतिरिक्त तुम और जो भी चाहो, वह वरदान मांगो।" अभय ने कहा - "आपका यह वचन अभी आपके पास अमानत रखता हूँ । जब मांगने का मौका आवेगा, तब मांग लूगा "
अभय ने और भो ऐसे ही तीन बुद्धिमानी पूर्ण काम किए। प्रतिबार राजा चंडप्रद्योत ने उन्हें एक-एक वरदान देने का वचन दिया।
जब सब मिलाकर चार वचन हो गए। तब एक दिन अभयकुमार ने कहा-"महाराज, अब मैं अपने वरदान माँगता हूँ।
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