Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह वहां बहुत से लोग उनकी पहली दशा को जानते थे, अतः वे उनका मजाक करने लगे । और कहने लगे-'कि इस दोस्त का जब कहीं ठिकाना न लगा तब साधू हो गया।" लोग उसका और भी कई तरह से तिरस्कार करने लगे। अतः उन्होंने सोचा कि जहाँ अपमान होता हो वहां रहना उचित नहीं है।
उन्होंने अपना यह विचार अपने गुरूजी से बतलाया। गुरूजी ने कहा-"महानुभाव, तुम्हारा विचार ठीक है, हम लोग कल यहां से बिहार कर देगे।"
अभयकुमार, भगवान महावीर के बड़े भक्त थे। वे जिस प्रकार राज्य कार्य में चतुर थे, उसी प्रकार धर्म-ध्यान में भी बड़े कुशल थे । सदा श्री जिनेश्वर देव की पूजा करते और साधुमुनिराजों को वंदन करते थे। उन्हें मुनि के इस कष्ट का पता लगा। अतः वे अपने गुरू के पास आये और उनसे प्रार्थना की, कि-हे भगवन् ! कृपा करके कम से कम एक दिन तो आप और यहीं रुक जाइए, फिर चाहे सुख पूर्वक बिहार करें।" गुरुजी ने यह प्रार्थना स्वीकार करली।
। दूसरे दिन अभयकुमार ने राजभंडार में से तीन मूल्यवान रत्न निकाले । और शहर के बीच चौक में आये । वहाँ पहुँच कर उन्होंने यह बात प्रकट करवाई कि ये तीन मूल्यवान रत्न हम देना चाहते हैं । यह सुनकर लोगों के झुण्ड के झुण्ड वहां एकत्रित हो गए, और अभयकुमार से पूछने लगे-“हे मन्त्री महोदय, ये रत्न आप किसे देंगे ?" अभयकुमार ने उत्तर दिया-"ये रत्न उस व्यक्ति को दिये जावेंगे जो तीन चीजें छोड़ दें, एक तो ठंडा पानी, दूसरा अग्नि और तीसरी स्त्री।"
मनुष्यों ने कहा-"ये तो बड़ी मुश्किल बातें हैं । हमेशा गर्म पानी
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