Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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बुद्धिनिधान अभयकुमार ]
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सवारों की बात सुनकर, तुम्हारे पिता तत्क्षण जाने को तैयार हुए। उन्होंने मुझसे कहा- "मेरे पिताजी मृत्यु शैया पर पड़े हैं, अतः मैं उनसे मिलने जाता हूँ। तुम अपने शरीर की रक्षा करना और अच्छी तरह रहना ।" यह कहकर उन्होंने मुझे एक चिट्ठी दी और आप उन आये हुए सवारों के साथ चले गये । वे जब से गये तब से फिर नहीं M लौटे। वर्षों व्यतीत होगये । प्रतिदिन सूर्य उदय होकर अस्त हो जाता है, किन्तु प्यारे बेटा अभय । इतने अधिक इन्तजार के बाद भी आज तक उनका कुल पता नहीं है ।
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अभय ने माता से कहा - " मां मुझे वह चिट्ठी दिखलाओ, मैं देख तो सही कि उस चिट्ठी में आखिर क्या लिखा है ?"
माता ने वह चिट्ठी दे दी, उसे पढ़कर अभय फिर बोला"मां आप चिन्ता न कीजिये मेरे पिता तो राजगृह के राजा हैं ।"
नन्दा ने बड़े आश्चर्य से पूछा - "क्या सचमुच तेरे पिता राजगृह के राजा हैं ?"
अभय - "हाँ ! इस चिट्ठी का जो ऐसा ही अर्थ है ।"
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नन्दा, यह सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई । किन्तु इसके बाद ही यह सोचकर वह बहुत दुखी होगई, कि मैं ऐसे अच्छे पति के वियोग मैं यहां पड़ी पड़ी दिन बिता रही हूँ। अभय ने अपने जीवन में मन्दा को पहली बार इतना दुखी देखा था, इसलिये उसे भी बड़ा दुःख हो आया वह कहने लगा- "मां । आप जरा भी चिन्ता न कीजिये; चलो हम लोग राजगृह को चलें, वहां अवश्य ही मेरे पिताजी से मुलाकात होगी ।"
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राजगृह उस काल में मगधदेश की राजधानी भी । उसकी
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