Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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६ बुद्धिनिधान अभयकुमार
वेणातट नामक एक ग्राम था। इस गांव में अभय नामक एक लड़का रहता था। यह बहुत अधिक बुद्धिमान, बड़ा होशियार और पढ़ने-लिखने तथा खेलने-कूदने में बड़ा तेज था।
अभय एक दिन खेलने गया । वहाँ खेल ही खेल में लड़ाई हो गई। इतने में एक लड़का-अभय से बोला-"अरे बिना बाप वाले उधर बैठ, इतनी तेजी किसके बल पर दिखला रहा है ? अभय बोला"जरा विचार कर बोल, मेरे पिता तो अभी मौजूद ही हैं, क्या तू भद्र सेठ को नहीं पहिचानता" ? वह लड़का कहने लगा.-"अरे वे तो तेरी मां के पिता हैं, तेरे पिता कहाँ से हो गए ?"
यह बात सुनकर अभय अपने घर आया और अपनी माता से पूछने लगा- "माताजी, मेरे पिताजी कहां हैं ?" माता ने उत्तर दिया - "बेटा, वे दुकान पर होंगे" अभय ने फिर कहा-"वे तो आपके पिता हैं, मैं तो अपने पिता को पूछ रहा हूँ ?" अभय की यह बात सुनकर नंदा अत्यन्त दुःखी हो गई और नेत्रों में आँसू भरकर यों कहने लगी।
"सुन बेटा ! एकबार यहां एक मुसाफिर आये। वे रूप गुण, तथा तेज की खान थे। सब तरह से वे बड़े प्रतापी और योग्य मालूम हुए, अतः पिताजी ने उनके साथ मेरा विवाह कर दिया। अभी विवाह के कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन परदेश से कुछ ऊँट सवार आये। उनमें से कुछ सवार नीचे उतरे और तुम्हारे पिताजी को एकान्त में बुलाकर उनसे कुछ बातचीत की। उन
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