Book Title: Jain Granth Sangraha Part 02
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
Publisher: Pushya Swarna Gyanpith Jaipur
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[ जैन कथा संग्रह यह क्यों ! वे किस कारण से भिक्षा नहीं लेते ?
ऐसा मालूम होता है, कि उन्होंने कुछ निश्चय कर लिया है, कि अमुक प्रकार भिक्षा मिलेगी तभी लेंगे।
किन्तु आखिर ऐसा कौन-सा निश्चय है ? अरे ! वह निश्चय तो बड़ा ही कड़ा है। ... "कोई सती और सुन्दर-राजकुमारी दासी बनी हुई हो, पैरों में लोहे की बेडियां पड़ी हों, सिर मुड़ा हुआ हो, भूखी हो, रोती हो, एक पैर देहरी के भीतर और दूसरा बाहर रखकर बैठी हो। ऐसी स्त्री सूप के एक कोने में रखी हुई उर्द की घुघरी यदि बहरावे, तो ही भिक्षा लेंगे।"
___ अहा ! कैसा कड़ा निश्चय है। ___ नगर में राजा रानी और दूसरे सब लोग यह चाहते हैं कि अब यदि योगीराज पारणा करलें, तो बड़ा ही अच्छा हो।
वे आज भी शहर में भिक्षा के लिए आये । जहाँ बैठी-बैठी चन्दनबाला विचार कर रही थी, वहीं वे योगीराज पधारे । उन्होंने देखा कि मेरी सारी-शर्ते यहां ठीक हैं, किन्तु केवल एक बात की कमी है। चन्दनबाला के नेत्रों में आँसू नहीं हैं । यह देखकर वे पीछे लौट चले।
चन्दनबाला ने देखा कि अतिथि आकर भी बिना भिक्षा लिए ही वापस जा रहे हैं, अतः उसे बड़ा दुःख हुआ। नेत्रों में आंसू भरकर वह कहने लगी-“कृपानाथ ! आप पीछे क्यों जा रहे हैं ? मुझ पर कृपा कीजिए और ये उड़द के उबले हुए दाने ग्रहण कीजिए। क्या मुझे इतना भी लाभ न मिलेगा।" योगीराज ने देखा कि चन्दनबाला के नेत्रों में आँसू भर आये हैं, अतः उन्होंने अपने हाथ लम्बे कर दिए। चन्दनबाला ने, वह उड़द की घूघरी (बाकुले) उन्हें बहरा दी।
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