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कुगुरुओं का चलाया हुआ है, जिनको अभ्यन्तर आँखे फूटी हुई हैं और जिन्हें शुद्ध मार्ग नहीं दिखता ।
शंका ने मार धींगा ने पोसे, आतो बात दीसे घणी गैरी । इण मांही दुष्टी धर्म प्ररुपे तो, रांक जीवां रा उठिया बैरी ॥ ( 'अनुकम्पा' ढाल १३ वीं )
अर्थात् - गरीबों ( स्थावरों ) को मार कर सशक्त (श्रस ) का पोषण करना बहुत बुरी बात है, परन्तु गरीबों ( स्थावरों ) के शत्रु दुष्ट लोग ऐसे खड़े हुए हैं कि इस कार्य में भी धर्म बताते हैं । जीवां ने मार जीवां ने पोषे ते तो मार्ग संसार नो जाणोजी । ति मही साधु धर्म बतावे ते पूरा मूढ़ अयाणोजी । छः काय रा शस्त्र जीव असंयती त्यांरो जीवणों मरणो न चावेजी । त्यांरो जीवणो मरणो साधु चावे तो राग द्वेष वेहूँ आवेजी । ( 'अनुकम्पा' ढाल ६ वीं) अर्थात् — ऐसा कहते हैं कि एकेन्द्रिय जीवों को मार कर पंचेन्द्रिय जोवों का पोषण करना संसार का पाप पूर्ण कार्य है । यदि इस तरह के कार्य को कोई साधु धर्म बताता है, तो वह पूरा मूर्ख और अज्ञानी है । अत्रती जीव संसार के सभी जीव ) छः काय के जीवों के है। इसलिए भत्रती को जीवित रखने या
( साधु के सिवाय
लिए अस्त्र के समान मारने की इच्छा तक
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