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व्यक्ति भी समझ सकता है कि न देने का नाम दान कैसे हो सकता है ? देने का नाम ही दान है। 'अभय' देने को ही अभय-दान कहा जाता है, और अभय-दान का पात्र वही है, जो भय पा रहा है। सियाल यदि सिंह को नहीं मार सकता है, तो क्या इसका नाम अभयदान हो जावेगा? यह तो एक व्यर्थ की बात है।
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