Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Balchand Shrishrimal

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Page 177
________________ ( १६६ ) गाँव, समाज और देश के धर्म को मानते ही नहीं और उनके प्रति कोई जिम्मेवारी भी नहीं समझते, पर हम लोगों को भी इन सब कामों में एकान्त पाप ही पाप बताया करते हैं। तब आप ही बताइये, हमारे गाँवों की हमारे समाज की और हमारी ओर से देश को हालत कैसे अच्छी हो ? हमारे बालक और बालिकाओं में दूसरे संस्कार कैसे पड़े ? उनके अन्दर समाज और देश की सेवा की महत्वकांक्षाएँ कैसे उत्पन्न हों, जब कि उन्हें यही सिखाया जाता है कि अगर तुम्हें अपना जीवन सफल करना है, सच्ची उन्नति करना है तो संसार को छोड़ो और हमारी टोली में शामिल हो जाओ। सचमुच इस टोली में जाते ही मनुष्य को सारे सुख मिल जाते हैं। बिना परिश्रम किये विभिन्न प्रकार का स्वादिष्ट भोजन मिलता है, पहनने को कपड़े मिल जाते हैं, और रात दिन हजारों स्त्री पुरुषों की सेवा? इससे ज्यादा और सुख की कल्पना ही क्या हो सकती है ? इसी सुख-इसी 'आत्म कल्याण' के लिए हर वर्ष उमीदवारों की संख्या बढ़ती जाती है। पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की तरह इसमें भी ज्यों ज्यों संख्या बढ़ती जाती हैं, त्यों त्यों इस टोली की सत्ता भी बढ़ रही है जिसने हमारे सारे समाज को गुमराह बना दिया है। इतना सब होते हुए भी, अब भीतर ही भीतर युवकों में असन्तोष की अमि जल रही है। दुनिया की तरफ से वे बाँखें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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