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है,' बहुत से लोगों ने यह हकीकत सुनो होगी। श्रीयुत् चोपड़ाजी इस आक्षेप का परिहार करने को उत्सुक हैं, परन्तु हमें यह कहते हुए दिगोरी (खेद) होती है कि वकील महाशय स्वयं ही आक्षेप का प्रतिकार करने के बदले समर्थन करते हों, ऐसा प्रतीत होता है।
वकील महोदय ने रजू किया हुवा, एक कल्पित प्रसंग यहाँ विचारते हैं, कि इनके स्वयं के शब्दों में ही भूत दया सम्बन्धी प्रश्न और उत्तर दोनों तपासें
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प्रश्न - एक अनाथ बालक जाता हो, उसके पेट में कोई नराधम छुरी भोंकदे तो दया धर्मो को उस समय क्या करना ?
"उत्तर में वकील छोगमलजी चोपड़ा कहते हैं कि - जिनाझा प्रमाणे चलने वाले साधु साध्वी ऐसे अवसर में मजकुर श्रनाथ बालक को बचा सकते नहीं, वे तो उपदेश देकर घातक को दुष्कृत्य से निवृत्त करें, अन्यथा जो यह देखना असह्य हो तो वे उस जगह को छोड़कर दूसरी जगह पर चले जायें। उपदेश से हिंसक को समझा कर दुष्कृत्य से निवृत्त करना वीतराग प्ररूपित धर्म है किन्तु बल प्रयोग, लालच या शरमा-शरमी से खाजे, लाजे, त्राजे करके बचाने में श्री जिनेश्वर का धर्म नहीं । अतः बल प्रयोग से किसी को कष्ट पहुँचा कर बचा लेना यह श्री जिनेश्वर कथित धर्म नहीं है ।"
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