Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Balchand Shrishrimal

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Page 190
________________ कत्ताना श्री सिद्धराजजी दहा जेओ कलकत्तानी ईन्डीयन मरचन्दस चेम्बरना मन्त्री छे तथा तरुण जैनना तन्त्री श्री भंवरमलजी सिंघी ने मलवानो मने प्रसंग मळ्यो. कलकत्ताना जैनोमां मोटो भाग तेरा-पन्थी मारवाडीोनो छे. तेमनी रहेणी करणी, विचारश्रेणी, स्थितीचुस्तता अने अहिंसा सम्बन्धेना खोटा ख्यालोनी विगतवार हकीकतो ए भाइयो पासेथी में सांभली. ___ मारे तेरा-पन्थ विषे लखतां पहेलो तेथी पण विशेष माहीति मेळववी हती. एटले विशेष तपास करी तो जणायुं के पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज साहेबे 'सद्धर्म मण्डन' नामे एक अन्य ख्यो छे जेमां तेरा-पन्थना आचार्य जीतमलजीनुं लखेल.एक पुस्तक "भ्रम विध्वंसन" नु खण्डन करवामां आव्युं छे ते पुस्तक मेळवी जोइ गयो. तेमां शास्त्रनां संख्याबंध आधारो टांकी तेरापन्थी मान्यतामोनुं सफल खण्डन कयु छे. मारवाडमां ा संबंधे खब वादविवाद थयो हतो बने थाय छे श्री सद्धर्म माननी प्रस्तावनामा तेरा-पन्थी मान्यताको संबंधे केटलीक हकीकतो खो छे जे आपणे मानी न शकीए तेवी छे. कोई पण सम्प्रदाय के नाति पछी ते जैन होय के अजैन एवी मान्यताओ घरावे ए.:मने तो असंभव लाग्यु छतां तेनां घणां पुरावाओ आपवामां आवे छे. आवी मान्यतामोना केटलाक नमुनामो, ते प्रस्तावनामा काया छे. दाखल तरीके-. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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