Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Balchand Shrishrimal

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Page 191
________________ ( १८० ) (१) गायोथी भरेळ वाडामां आग लागे अने कोई दयावान पुरुष ए पाडगनुं द्वार खोली गायोनी रक्षा करे तेने तेरा-पन्थी एकान्त पाप कहे छे. (२)त्रण मजला उपरथी कोई बालक पडतुं होय तो तेने उपरथी पकड़ी बचावनार दयावान पुरुषने तेरा-पन्थी पाप करतो माने छे. (३) तेरापन्थी साधुओ सिवाय संसारमा सर्व प्राणीको 'कुपात्र' छे. ___ा वस्तु वांचीने मने षणुं आश्चर्य थयु. आवी मान्यताओ घरावती तात्विक भूमिका समजवा हुँ प्रयत्न करी रह्यो छु. दुर्भाग्ये तेरा-पन्थी साहित्य घj खरू मारवाड़ीमां के जे मने मळ्यु नथी. छतां जे थोडु मल्युं छे ते तेमज तेमनां श्रावको तथा श्री सिद्धराजजी उड्डा अने श्री सिंघी साथे मारे जे वातचीत थई ते उपस्थी तेरा-पन्य साधुओनो उपदेश आवी कोईक मांयतामोमां परिणामे एम मने लागे छे. x xxx x तेरा पन्थी मान्यताप्रोमां जैन धर्मनी साची भावना होत तो तेनु प्रतिविम्ब कापणे तेरा-पन्थी श्रावक समुदायमा जोई शकत भापणने जे जोवा मळे के ते तेथी तहन विपरीत छे. भाई श्री सिद्धराजजी ढड्डा बने श्री भंवरमलजी सिंघीए कलकत्ताना तेरा-पन्थी समाननी स्थिति मने वर्णवी ते उपरथी मणाय छे के तेगो अत्यन्त स्थिति चुस्त अने जड़ छे. सामाजिक कोई पण कार्यमा भाग न ले. समाज सेवामां तेजो धर्म मानता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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