Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Balchand Shrishrimal

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Page 183
________________ परिशिष्ट ०२ तेरह-पन्थ और जैन पत्र (श्वे० [ मू० ] सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध साप्ताहिक “जैन पत्र के ता० ८ मार्च १९४२ पृष्ट १४७ पर सामयिक स्फूरणा में से अनुवादित ) चोपड़ाजी का तेरा-पन्थी इतिहास तेरा-पन्य की मान्यताओं एवं आचार व्यवहार के विषय में हाल में अनुकूल तथा प्रतिकूल चर्चा चलती हुई वाँचने में आती है। कोई २ तो ऐसी अतिशयोक्तिएँ एवं मिथ्या स्तुतिएं करते हैं कि बुद्धिमान लोगों को कंटाला उत्पन्न किये बिना नहीं रहती और कोई २ बार ऐसे आक्षेप करने में आते हैं कि सचमुच तेरह-पन्य का स्वरूप क्या होगा, उस बाबत जरा भी प्रकाश नहीं मिले, ऐसी स्थिती में वकील छोगमलजी चोपड़ा जैन श्वेताम्बर तेरा-पन्थी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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