Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Balchand Shrishrimal

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Page 173
________________ ( १६२ ) मेरा और मेरे कुछ दूसरे मित्रों का भी ऐसा खयाल है कि पूज्यजी से मुलाकात करने वाले जितने विद्वान उनके पास आये, उनमें से किसी ने भी इतनी स्पष्टता के साथ अपने विचार प्रकट नहीं किये जितने कि आपके लेख में मिलते हैं। मैं समझता हूँ कि आपकी स्पष्टता और सच्चाई की तो पूज्यजी महाराज पर भी अवश्य छाप पड़ी होगी। आपके इस लेख से एक बड़ा फायदा यह भी हुआ कि अब भविष्य में पूज्य श्री यह कहने का साहस नहीं करेंगे कि हमारे पास जो लोग आकर बातचीत कर गये, उनकी सब शंकाएँ हमने दूर कर दी और उन्होंने हमारी बात मंजूर करली। अब तक तो पूज्यजी मुलाकात करने के लिए आने वाले किसी भी व्यक्ति को यह बात अवश्य कहा करते थे। शायद आपसे भी अवश्य कहा होगा। आने वाले व्यक्ति पर अपना प्रभाव डालने के लिए ही ऐसा कहा जाता है और करीब करीब लोग इस प्रभाव में आ ही जाते हैं, क्योंकि हर एक को तो भीतरी अवस्था का पता नहीं होता। आपने अपनी खरी राय इतनी स्पष्टता के साथ प्रकट कर जिस साहस का परिचय दिया है, उस से अवश्य समाज की आँखें खुलेंगी, ऐसा मेरा पक्का विश्वास है। आपने एक बार किसी पत्र में लिखा था कि 'आपकी सम्प्रदाय के साधुओं के क्रिया कलाप के बारे में मैं बहुत कम जानता हूँ । अच्छा हुआ कि इस बार आप स्वयं अपनी आँखों से हमारे साधु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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