Book Title: Jain Darshan me Shwetambar Terah Panth
Author(s): Shankarprasad Dikshit
Publisher: Balchand Shrishrimal

View full book text
Previous | Next

Page 156
________________ ( १४५ ) लोगों को आग पानी आदि के जीवों को हिंसा का नाम लेकर भ्रम क्यों डालते हो ? स्पष्ट ही क्यों नहीं कहते कि किसी दुःखी का दुःख मिटाना, किसी मरते हुए जीव को बचाना पाप है, चाहे दुःख मिटाने या बचाने में किसी जीव की हिंसा न भी हुई हो, और अचित (निर्जीव) पदार्थ के देने, अथवा निर्वद्य ( पाप रहित ) उपाय के करने से ही किसी का दुःख क्यों न मिटा हो, या कोई मरता हुआ जीव क्यों न बचा हो ! तेरह-पन्थी साधु इसी तरह की अनेक युक्तियाँ देते हैं, जिन्हें कुयुक्तियाँ कहना कुछ भी बुरा न होगा । उन सब का वर्णन या खण्डन प्रन्थवृद्धि के भय से नहीं किया गया है, किन्तु उनमें की कुछ ही युक्तियों का हमने वर्णन किया है, और तेरह - पन्थी साधुओं की युक्ति का खण्डन करने वाली युक्तियाँ दी हैं । हमारे द्वारा वर्णित युक्तियों पर से बुद्धिमान व्यक्ति उन सब युक्तियों के विरुद्ध युक्ति की कल्पना कर सकता है, जो तेरहपन्थी साधुओं की ओर से दी जावें । .. हमने अपनी ओर से जो युक्तियाँ ऊपर दी हैं, वे युक्तियाँ तेरह - पन्थियों से प्रश्न करने के रूप में भी काम में लाई जा सकती. हैं । ऐसा करने से तेरह-पन्थियों की मान्यता का नग्न रूप सामने आ ही जावेगा और यह पता लग जावे, कि तेरह - पन्थियों की मान्यता का असली रूप क्या है, तथा वे उस असली रूप को : www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

Loading...

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196