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( १४४ ) हम तेरह-पन्थी लोगों की इस दलील को दूसरे रूप में सामने रखते हैं। मान लो, कि एक आदमी के पेट में जब तब दर्द होने लगता था, इसलिए वह हुक्का पिया करता था। जिसमें भाग पानी के जीवों की हिंसा हुआ करती थी। किसी दयालु पुरुष ने उस आदमी को एक ऐसी अचित दवा दी, कि जिससे उसका पेट का दुःखना मिट गया तत्पश्चात् उसने हुक्का पीना भो छोड़ दिया, जिस प्रकार से उसका पेट दुखना बन्द हो गया और माग पानी के जीवों की हिंसा भी बच गई; इस काम में तो उस दवा देने वाले आदमी को पाप नहीं लगा 8
इसी प्रकार कोई आदमी दारू पीता था और बहुत उत्पात करता था, पर के लोगों को मारा पीटा करता था, तथा दूसरे लोगों से भी झगड़ा किया करता था। इतना ही नहीं वह घर में का अनाज भी दारू खरीदने के लिए बेंच दिया करता था, जिससे उसके घर के लोग भूखों मरते थे। यह देखकर एक दयालु आदमी उस दारू पीने वाले को दूध पिलाने लगा, जिससे उसकी दारू पीने की आदत छूट गई और वह भी पाप से बच गया, तथा उसके घर के लोग भी जारीभ्यान आदि के पाप से बच गये। इस काम में तो उस दूध पिलाकर दारू छुड़ाने वाले को पाप
गना न मानोगे ? यदि इन दोनों कामों में भी पाप होना मानते हो, तो फिर हुक्के से होने वाली हिंसा का नाम क्यों लेते हो ?
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