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(१४२ ) की दया करने वाले को तो दयावान मानोगे १ किन्तु तेरह-पन्थी दोनों को हो पापी मानते हैं।
तेरह-पन्थी कहते हैं कि 'कुछ आदमी भूखों प्यासों मर रहे हैं। उनको गाजर मूला खिला तथा कच्चा पानी पिलाकर बचाया, यह कितना पाप हुआ! क्योंकि गाजर, मूला और कच्चे पानी में अनन्त जीव हैं। बचे तो कुछ भादमी, और हिंसा हुई अनन्तों जीवों की। इसी से हम कहते हैं कि भूखों को खिलाना और प्यासों को पानी पिलाना पाप है।'
इस तरह गाजर मूले और पानी के जीवों को हिंसा को आगे रखकर भूखे प्यासे को भोजन पानी देना पाप बताते हैं। यद्यपि उनका उद्देश्य तो लोगों के हृदय में से दुःखी के प्रति दया निकालना है, परन्तु उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे इस तरह की बात भागे रख कर लोगों को चक्कर में डालते हैं। हम उनकी इस युक्ति के उत्तर में दूसरी युक्ति रखते हैं, जिसमें गाजर, मूण या पानी के जीवों को हिंसा का नाम भी नहीं है।
मानलो कि कुछ आदमी भूखों प्यासों मर रहे थे। इस कारण वे एक बकरे को मार डालने की तैयारी में थे। इतने ही में वहाँ से एक श्रावक निकला, जो गरम पानी ही पीता था, कपा पानी नहीं पीता था। उस श्रावक ने उन भादमियों से पूछा, कि
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