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छाछ पिलाने में भी पाप मानते हैं। साधु के सिवाय किसी को कुछ भी देने या बचाने में एकान्त पाप मानते हैं ।
( ४ )
तेरह-पन्थी कहते हैं कि 'एक बिल्ली चूहे को मारना चाहती है । यदि चूहों को बचाने के लिए बिल्ली को हाँका जाता है, तो बिल्ली मूखी रहती है और उसको अन्तराय लगती है । इसी से हम कहते हैं कि किसी को बचाने में धर्म पुण्य नहीं है ।'
हम तेरह - पन्थियों की इस युक्ति का यह उत्तर देते हैं कि यदि किसी आदमी ने बिल्ली को भी दूध पिला दिया और चूहे को भी बचा दिया, तो इसमें क्या पाप हुआ ? दोनों ही बचे हैं । ( ५ ) तेरह - पन्थी कहते हैं कि 'एक गाय प्यासी बँधी हुई थी । एक आदमी ने दया लाकर उस गाय को पानी पीने के लिए खोल दिया । वह गाय पानी पीने चली; परन्तु एक दूसरे आदमी ने सोचा कि यह गाय इस तलैया में जा रही है । तलैया में पानी बहुत बोड़ा है, और मेंढक मछली बहुत हैं, जो गाय के पाँव से दब कर मर जायेंगे । ऐसा सोचकर उसने पानी पीने के लिए जाती हुई याय को वापस होंक दी, गाय को पानी नहीं पीने दिया। इस तरह एक आदमी ने तो गाय की दया की, पानी में के मेंढक मछली की दबा नहीं की और दूसरे आदमी ने मेंढक मछली की दया की,
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