________________
( १५० ) इस भाँति उपयोग न किया जाय जिससे जगत का अधिक से अधिक कल्याण हो, तो उस तप, त्याग और संयम से कोई लाम नहीं हो सकता। ऐसी हालत में तो वे जीवन में उल्टी कृत्रिमता पैदा करते हैं। इसलिए मैं तप, त्याग और संयम को उस समय तक कोई महत्व नहीं देता जब तक कि यह न मालूम हो जाय कि उनका उपयोग किस तरह किया जा रहा है।
इस दृष्टि से विचार करने पर, मैंने पड़िहारा में जो कुछ देखा, उससे मुझे कोई सन्तोष नहीं मिला। पूज्यजी से जो बातें हुई, उनमें विचारक की सजगता नहीं मिली, जीवन विकास के उम्मीदवार की जागरूक बुद्धि और उदार दिल भी नहीं मिला। आज प्रायः अधिकांश 'साधुओं' की यही हालत है और पूज्यजी उसके बाहर नहीं है। यहाँ मेरा उद्देश्य उन सारे प्रमों की चर्चा करने का नहीं है, जिन प्रश्नों पर पूज्यजी के साथ मेरी बात-चीत हुई। उन सब की चर्चा करना न तो आवश्यक ही है और न सम्भव हो है। मैं यहाँ सिर्फ अपने विचार हो प्रकट करूँगा, जो पूज्यजी से मिलने के बाद मेरे मन में उत्पन्न हुए।
यदि किसी प्रश्न पर शास को छोड़कर वे विचार ही नहीं कर सकते-शास्त्र में जो कुछ लिखा है या जो कुछ लिखा हुआ
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com