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( ९४ ) किसी को आहार पानी न दूंगा, न उनका स्वागत सत्कार ही करूँगा
आदि। ऐसा उदाहरण देकर तेरह-पन्थी लोग इस पर से यह दलील करते हैं, कि यदि साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देना तथा खिलाना-पिलाना या स्वागत सत्कार करना पाप न होता, तो मानन्द श्रावक ऐसा अभिग्रह क्यों लेता? और भगवान महावीर ऐसा अभिग्रह क्यों कराते ? आदि ।
इस तरह मानन्द श्रावक के अभिग्रह के नाम से साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देना पाप बताते हैं। यद्यपि आनन्द श्रावक ने जो अभिग्रह लिया था, वह अन्य युथिक साधुलों को गुरु बुद्धि से दान देने के विषय में ही लिया था, ऐसा तेरह पन्थियों के सिवाय वे सभी जैन मानते हैं-जो उपासक दशांग सूत्र को मानने वाले हैं, परन्तु यह बात तेरह-पन्थियों को स्वीकार नहीं है । वे इस सम्बन्ध में बहुतसी दलीलें करते हैं, और कहते हैं कि आनन्द श्रावक का अभिग्रह साधु के सिवाय सबके लिए था।
हम इन दलीलों में अभी न पड़ कर, आनन्द श्रावक के चरित्र से ही यह सिद्ध करते हैं कि साधु के सिवाय अन्य लोगों को दान देना या मित्र, जाति, कुटुम्बी, स्वजन, सम्बन्धी बारि को खिलाना-पिलाना या देना लेना पाप नहीं है। हम जो कुछ कहेंगे, उससे यह भी स्पष्ट हो जावेगा कि वास्तव में प्रानन्द
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