________________
( ११३ ) नाग नागिनी हुंता बलता लकड़ा में, त्यांने पार्श्वनाथजी काढ्या कहे बारे । अग्नि में बलतां ने राख्या जीवता, पाणी अमि आदिक जीवां ने मारे । ओ उपकार संसार रो।
('अनुकम्पा' ढाल ११ वीं) अर्थात-पार्श्वनाथजी ने आग में जलते हुए नाग नागिन को बाहर निकाल कर उनको जीवित रखा, इस कार्य में भगवान पार्श्वनाथजी ने आग और पानी के जीवों की हिंसा की, इसलिए यह उपकार संसार का है, यानी पाप है।*
इस तरह तीनों ही तीर्थङ्कर द्वारा स्थापित जीव-रक्षा विषयक आदर्श को तेरह-पन्यो पाप में मानते हैं। इस सम्बन्ध में तेरहपन्थियों की दलीलें व्यर्थसी हैं। इस सम्बन्धी उनकी दलीलों का खण्डन करने में पढ़ना, अपना समय नष्ट करना है। उनकी दलीलें, बुद्धि हीन और अपढ़ लोगों को चाहे भ्रम में डाल सकें, परन्तु बुद्धिमान लोग भ्रम में नहीं पड़ सकते। बुद्धिमानों के लिए
® यह बताया जा चुका है, कि तेरह पन्थी लोग 'संसार का उपकार' संसार में जन्म मरण कराने वाला 'पाप' मानते हैं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com