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( ११२) जबरदस्त विरोध करके उन जीवों का रक्षण कराया था। इसके सिवाय भगवान महावीर ने तेजो लेश्या से जलते हुए गोशालक को बचाया था, इसका शास्त्र में स्पष्ट उल्लेख है। इस प्रकार तीन उदाहरण तो तीर्थरों के ही हैं, जिनसे यह सिद्ध है कि मरते हुए जीव को बचाना पाप नहीं है, अपितु जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त है। यदि मरते हुए जीव को बचाना पाप होता तो तीर्थकर भगवान स्वयं यह पाप क्यों करते ?
तेरह-पन्थी लोग शास्त्र के इन तीनों प्रमाणों के लिए भी कुछ न कुछ दलील देकर लोगों को भुलावे में डालते ही हैं। भगवान अरिष्ट नमि के लिए कहते हैं, कि उन जीवों को हिंसा भगवान अरिष्ट नेमि के निमित्त से हो रही थी, इसीसे भगवान अरिष्ठ नेमि ने उन जीवों की हिंसा का पाप अपने लिए माना और उस पाप को टाला। भगवान महावीर के लिए कहते हैं कि गोशालक को बचा कर भगवान महावीर ने भूल की। तेरह-पन्थियों ने भगवान अरिष्ट नेमि और भगवान महावीर के जीव-रक्षा विषयक बादों को मिटाने के लिए अपने ग्रन्थ 'भ्रम विध्वंसन' में कई पृष्ठ के पृष्ट लिखे हैं, और अनुकम्पा की दालों में दो तीन पूरी दालें इसी विषय को लेकर की है कि भगवान महावीर ने गोशाठक को बचाकर भयंकर भूल की थी। इसी प्रकार भगवान पार्श्वनाथ के लिए भी कहते हैं कि
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