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गये । इसलिए तेरह - पन्थी तीर्थङ्करों से भी ज्यादा ज्ञानी ठहरे ! तीर्थकरों के भी गुरु ठहरे !
एक बात और है । भगवान श्ररिष्ट नेमि, भगवान पार्श्वनाथ या भगवान महावीर ने जो भूल की थी, उन्हें अपनी उस भूल को स्वीकार करके जनता को सावधान कर देना चाहिए था, कि मैंने यह भूल की है, लेकिन तुम कोई इस तरह की भूल मत करना । कम से कम उन श्रावकों को तो इस बात से परिचित कर ही देना चाहिए था, जिन श्रावकों ने भगवान तीर्थङ्कर के पास व्रत स्वीकार किये थे ।
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तेरह-पन्थी लोगों के इस कथनानुसार कि - " धर्म अधर्म की पहचान साधु ही कराते हैं, + भगवान महावीर का यह कर्तव्य था, कि श्रावकों को अधर्म की पहचान कराने के लिए, श्रावकों को अतिचार बताने के साथ ही साथ यह भी कह देते कि - " किसी मरते हुए जीव को बचाना पाप है, अतः इस पाप से भी बचना " इसलिए तेरह - पन्थियों की मान्यतानुसार क्या भगवान महावीर को कर्तव्य से पतित मानना उचित होगा ? यह बात तो किसी भी जैन को स्वीकार नहीं हो सकती। इसलिए इसी निश्चय पर पहुँचा
+ देखो 'भ्रम विध्वंसन' पृष्ट ५०-५१ जिसका उद्धरण हम पिछले प्रकरण में दे चुके हैं।
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