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छः काय के जीवों को मारकर जिमाते हैं। यह जीव-हिंसा का मार्ग ही बुरा है, लेकिन अनार्य लोग इसमें भी धर्म बताते हैं ॥ १ ॥
रुपया खर्च कर अनेक आरम्भ करके अघरणी ( गर्भवती का आठवें या सातवें मास का उत्सव ) भात, बरोठी आदि न्याति वाले को जिमाते हैं । ये सब संसार बढ़ाने के काम हैं (यानी पाप हैं, लेकिन मूर्ख लोग इनमें धर्म बताते हैं ।
इस तरह सम्बन्धी, स्नेही, स्वधर्मी ( श्रावक ) और न्याति को जिमाना तो 'रीति' के अनुसार होने पर भी तेरह - पन्थी लोग पाप कहते हैं, फिर तीर्थङ्करों द्वारा दिये गये दान को और श्रेणिक की जीव हत्या न करने की घोषणा को पाप क्यों नहीं कहते ? जब ये सभी काम रीति के अनुसार हैं, तब एक पाप हो, और दूसरा पाप नहीं, इसका क्या अर्थ ? यह तो स्पष्ट ही जनता को घोखे में डालना है ।
साधुओं के सिवा अन्य लोगों को मित्र, स्नेही, सम्बन्धी, ज्ञाति आदि को पाप नहीं है, यह हम अगले प्रकरण में बतावेंगे । यहाँ तो केवल
दिया गया दान, तथा भोजन कराना एकान्त
इतना ही बताना इष्ट है कि तेरह-पन्थी लोग, दुश्मन बनकर किस तरह लोगों को चक्कर में किस तरह कहीं कुछ तथा कहीं कुछ मानते हैं ।
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अनुकम्पा दान के
डालते हैं, और
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