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आनन्द श्रावक का यह कार्य उसके द्वारा रखे गये किसी भागार के अन्र्तगत भी नहीं आता है। क्योंकि उसने सब को भोजन कराने आदि विषयक जो निश्चय किया था, वह अपने मन से ही किया था, ऐसा शास्त्र का स्पष्ट पाठ है। उससे राजा गण, बलवान, गुरुजन श्रादि किसी ने भी यह नहीं कहा था कि तुम सब को भोजन कराओ या वस्त्रादि दो।
आनन्द श्रावक ने अपने इस कार्य के लिए कोई प्रायश्चित भी नहीं लिया था। और तो क्या, उसने सबको खिलाने का जो निश्चय किया था, वह भी धर्म जागरणा करते हुए। यदि पुरजन
आदि किसी को खिलाना अथवा किसी को कुछ देना पाप होता, तो भानन्द श्रावक ऐसा पाप क्यों करता ? उसने यह कार्य भूल से किया हो, ऐसा भी नहीं है। क्योंकि शास्त्र का यह पाठ स्पष्ट है कि आनन्द श्रावक ने जो व्रत लिये थे, या जो प्रतिज्ञा की थी उनका अर्थ भी भगवान से समझ लिया था।
___यदि तेरह-पन्थियों के कथनानुसार मित्र, झाति सम्बन्धी आदि को खिलाना-पिलाना या देना पाप होता तो आनन्द श्रावक के लिए ऐसा कोई कारण न था, जो वह ऐसा पाप करता क्योंकि भानन्द श्रावक ने यह कार्य विशेष निवृत्ति बढ़ाते समय श्रावकपने में किया था। इस प्रकार इस पाठ से सिद्ध है कि
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