________________
( ९५ ) भावक ने जो अभिग्रह किया था, वह सब लोगों के लिए नहीं था, किन्तु केवल अन्य युथिक साधुओं को दान देने आदि के विषय में ही था और वह भी केवल गुरु बुद्धि से। ___ आप आनन्द श्रावक के चरित्र को देखिये। " किसी समय बाधी रात के पश्चात् धर्म जागरणा करते हुए मानन्द श्रावक ने इस प्रकार का अध्यवसाय ( विचार ) और मनोगत संकल्प किया कि मैं इस वाणिज्य ग्राम नगर के बहुत से राज्याधिकारी एवं समस्त कुटुम्ब के लिए आधार भूत हूँ, इस कारण उनके कामों में पड़ने से मैं, भगवान महावीर के पास से जो धर्म स्वीकार किया है, उस धर्म को पूरी तरह पालने में समर्थ नहीं हैं। इस लिए मैं कल सूर्योदय होने पर बहुतसा असन पान खाद्य और स्वाध ( भोजन, पेय, उपभोजन और स्वाद्य) निपजाकर मेरे मित्र झाति आदि को जिमा कर तथा मित्र ज्ञाति और बड़े पुत्र की सम्मति लेकर, कोल्लाक सनिवेश की पौषधशाला में भगवान महावीर से स्वीकृत धर्म का पालन करता हुमा विचरूँगा। इस तरह निश्चय करके भानन्द श्रावक ने सूर्योदय होने पर बहुतसो खानेपीने गादि की सामग्री बनवाई, और मित्र ज्ञाति तथा नगर के लोगों को बुलाकर उनको खिलाया-पिलाया, तथा पुष्प-वस्त्र आदि से उन सब का सत्कार सम्मान किया। फिर उन सब के सामने अपने बड़े पुत्र को बुलाकर उससे कहा, कि हे पुत्र! जिस प्रकार
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com