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पात्र या अपात्र अपेक्षाकृत है, के लिए ही लगते हैं। सभी
न पात्र है ।
मतलब यह है कि जिसके लिए जो मर्यादा है, वह उसका पात्र है, और जिसके लिए जो मर्यादा नहीं है, वह उसका पात्र नहीं है, किन्तु उसके लिए अपात्र है। जो पात्र है, उसके द्वारा जब तक मर्यादा की सीमा का अनुकूल या प्रतिकूल उल्लंघन नहीं होता है, वह मर्यादा भीतर ही है, तब तक तो वह पात्र ही है । उसको न सुपात्र कहा जावेगा, न कुपात्र ही कहा जावेगा । लेकिन जब वह अनुकूल दिशा में मर्यादा का उल्लंघन करता है, यानी आगे बढ़ता है, तब उसे सुपात्र कहा जाता है और प्रतिकूल दिशा में मर्यादा का उल्लंघन करके श्रागे बढ़ता है, तो कुपात्र कहा जावेगा । जैसे पुत्र और अपुत्र, पुत्र तो आपका लड़का है, लेकिन अपुत्र आपका लड़का नहीं है। जो आपका लड़का ही नहीं है, वह यदि आपको खाने को नहीं देता है, तो श्राप उसको सुपुत्र न कहेंगे । इसके विरुद्ध जो आपका लड़का है, वह जब तक अपने कर्त्तव्य का साधारण रीति से पालन करता रहेगा, आप उसको पुत्र कहेंगे। जब वह अपने कर्त्तव्य का विशेषरूप से पालन करेया, तब आप उसको सुपुत्र कहेंगे और जब वह अपने कर्तव्य की उपेक्षा करेगा, अपने कर्त्तव्य का
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और 'सु' तथा 'कु' बातों के लिए न तो
विशेषण - पात्र कोई पात्र है,