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( ७४ ) पोषी पोषी आजीविका करे। दानशाला ऊपर रहे रोजगार रे वास्ते तथा ग्वालियादिक दाम लेइ, गाय भैंस्यां आदि चरावे । इम कुक्कुट माजीर आदिक पोषी पोषी आजीविका करे। आदिक शब्द में तो सर्व असंयति ने रोजगार रे अर्थे राखे ते असंयती व्यापार कहिये । अने दाम लियां बिना असंयती ने पोषे ते व्यापार नहीं। परं पाप किम न कहिये । ए तो पनरे १५. ई व्यापार छे ते दाम लेई करे तो व्यापार अने पनरे १५ ई दाम विना खेवे तो व्यापार नहीं। परं पाप किम न कहिये।” , इस कथन का सार यह है कि पैसे लेकर असंयति (साधु के सिवाय और समस्त जीव) का पोषण करना तो 'असंयति पोषण' नाम का कर्मादान (व्यापार) है, और बिना पैसे लिये असंयति का पोषण करना व्यापार तो नहीं है, लेकिन पाप तो है ही।
® पन्द्रह कर्मादान ( व्यापार ) महान् पाप पूर्ण कार्य है, इसलिए श्रावक के लिए पन्द्रह कर्मादान का सेवन (यानो उन पन्द्रह व्यापार का करना ) निषिद्ध है। तेरह-पन्थी कहते हैं कि पैसे लेकर असंपति का पोषण करना कर्मादान ( पापपूर्ण ) है और बिना पैसे लिए पोषण करना भी पाप है। इसके अनुसार यदि असंयति के साथ व्यापार किया जाता है, तो व्यापार करना भी पाप है और उनको मुफ्त चीज़ दी जाती है, तो वह भी पाप है। इसके लिए उन्होंने उदाहरण भी दिया
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