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( ७५ ) इस कथन में तेरह-पन्थियों के झूठ, कपट, छल और धूर्तता का दिग्दर्शन कराते हैं। पहिले तो उन्होंने लिखा कि असती जण पोसणया का अर्थ कितने ही लोग विरुद्ध करते हैं। उन्होंने यह लिखा तो सही, परन्तु फिर यह नहीं बताया कि विरुद्ध अर्थ क्या करते हैं, और वास्तविक अर्थ क्या और क्यों है ? ऐसा कुछ न कह कर इस बात को ही उड़ा देते हैं और जैसे बच्चे को समझाने के लिए बात पल्टा दी जाती है, उसी तरह बात पल्टा कर आप ही प्रश्न खड़ा करते हैं कि 'यहाँ तो असंयतो पोष ब्यापार कहा है, अनुकम्पा के लिए असंयती के पोषण को व्यापार कैसे कहते हो? यह प्रश्न खड़ा किया कैसे और किस अर्थ पर से असंयति पोष व्यापार कहाँ कहा है, यह वे ही जानें । हम पहिले कह चुके हैं कि 'असती जण पोषणया' का अर्थ असती त्रियों के पोषण द्वारा आजीविका चलाना है। यह अर्थ प्रसिद्ध भी है, शास्त्रानुसार भी है, तथा शब्दानुसार भी है। इतना ही नहीं, किन्तु स्वयं तेरह-पन्थी भी 'भ्रम-विध्वंसन' पृष्ठ ८४ में कर्मादानों है, जैसे दानशाला पर नौकरी करता है, वह कर्मादान तो नहीं है परन्तु पाप तो है, और पैसे लेकर गाय भैंस चराता है, वह कर्मादान है। इस प्रकार असंयति से व्यापार सम्बन्ध, नौकरी सम्बन्ध रखना भी पाप है
और पाप भी साधारण नहीं, कर्मादान का सेवन । कर्मादान का सेवन करना ऐसा पाप माना जाता है, कि उस पाप को करने वाला, भावक भी नहीं रह सकता।
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