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( ३९ ) दूसरा पुत्र अपने सिर पर का कर्ज उतार रहा है। बाप किसको रोकेगा १ कर्ज करने वाले को रोकेगा, या कर्ज उतारने वाले को रोकेगा ? बेचारे भोले लोग कह देते हैं कि कर्म करने वाले को हो बाप रोकेगा, लेकिन जो कर्ज उतार रहा है, उसके काम में बाप हस्तक्षेप क्यों करेगा ? तब तेरह-पन्थी कहते हैं कि इसी तरह इस चित्र में साधु है, जो सब जीवों के बाप की तरह है। छः काय के जीवों के प्रति-प्रालक हैं और उनके सामने यह कसाई और यह बैल है। ये दोनों ही साधु मुनिराज के पुत्र हैं। कसाई रूपी पुत्र बैल रूपी पुत्र को मारकर अपने पर कर्म-रूप ऋण चढ़ा रहा है, लेकिन बैल रूपी पुत्र मरकर अपने पर का कर्म ऋण उतार रहा है। ऐसी दशा में साधु बैल-रूपी पुत्र को कर्म रूपी ऋण चुकाने से कैसे रोक सकते हैं ? यानी मरने से कैसे बचा सकते हैं ? यदि कर्म-ऋण चुकाते हुए पुत्र को भी साधु-रूपी पिता रोकते हैं, तो पिता होकर भी उसका अहित करते हैं। इसो से हम कहते हैं, कि किसी मरते हुए जीव को बचाना, या दुःख पाते हुए जीव को दुःख मुक्त करना पाप है । क्योंकि ऐसा करने से वह अपने सिर पर का कर्म-ऋण चुकाने से वंचित रह जाता है।
साधारण बुद्धि वाला आदमी तेरह-पन्थी साधुनों की इस कुयुक्ति को पहले तो ठीक मान बैठता है। वह क्या जाने कि ये
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