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मरने से नहीं बचाते ।"
इम पर से प्रश्न किया जाता है कि कर्म ऋण न करने के लिए जो उपदेश दिया, वह उपदेश सफल होने पर मारने वाला, जिसको मार रहा
साधु ने मारने वाले को
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था, उसका कर्म ऋण चुकाना रुक गया या नहीं ? उसके कर्म ऋण चुकाने में अन्तराय पड़ गई और वह अन्तराय साधु ने डाली, इसलिए साधु को अन्तराय डालने का पाप हुआ या नहीं ? भविष्य में जो अन्तराय पड़ती है, उसका पाप उपदेश देने वाले को न लगना तो आप कहते हैं, लेकिन बकरे के लिए तो आपने वर्तमान में ही अन्तराय डाली है और वर्तमान में अन्तराय डालना आप भी पाप मानते हैं । देखिये, भ्रमधिष्वंसन पृष्ठ ५० दानाधिकार में उपदेश के कारण दूसरे को होने वाली अन्तराय के भविष्य में यह बताते हुए कि भूतकालीन और भविष्यकालीन अन्तराय से साधु को दोष नहीं आता है, आपके आचार्य कहते हैं कि
CC.
'अन्तराय तो वर्तमान-काल में इज कही छे, पिण और वेलां कही नहीं” ।
इसके अनुसार आपके सिद्धान्तानुसार मारने वाले को भी उपदेश देना पाप हुआ या नहीं ? एवं मरने वाले को आपने
अन्तराय दी या नहीं ? यह पाप क्यों करते हैं ?
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