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( ४३ ) तेरह-पन्थी साधुओं से ही पूछते हैं कि जो जीव धर्म को नहीं जानते, वे जब किसी के द्वारा मारे जाने लगेंगे, तब उनमें आर्च ध्यान और रौद्र ध्यान होगा, या धर्म भ्यान और शुक्ल भ्यान होगा ? यदि धर्म न जानने पर भी बकरे को धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान हो सकता है, तब तो धर्म की जरूरत ही क्या रही ? क्योंकि धर्म का उद्देश्य आत्मा में धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान लाना है। ये दोनों ध्यान यदि धर्म न जानने वाले पशु को भी हो सकते हैं। तो फिर धर्म की जरूरत ही क्या रही ? और यदि धर्म न जानने वाले बकरे को राजपूत द्वारा मारे जाने के समय धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान नहीं हुआ, किन्तु अातं ध्यान और रौद्र ध्यान हुआ, तो आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान से महान् कर्म का बंध होता है या नहीं ? और यदि महान कर्म का बन्ध होता है, तो आपका यह कथन कि "बकरा अपने सिर पर का कर्म ऋण चुकाता है" झूठ और शास्त्र विरुद्ध रहा या नहीं। .
अब हम दूसरी श्लोल देते हैं। जैसा कि बताया जा चुका है, तेरह-पन्थ का सिद्धान्त है कि "मारने वाला अपने सिर पर कर्म ऋण करता है, इसलिए साधु लोग उसको उपदेश देकर कर्म ऋण करने से रोकते हैं, परन्तु जो मारा जा रहा है, वह अपने सिर पर का कर्म ऋण चुकाता है। इसलिए साधुरूपी पिता उस कर्म ऋण चुकाने वाले को कर्म ऋण चुकाने से नहीं रोकते, यानी
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