________________
( ४२ ) और किसी रोग द्वारा पीड़ित होते होंगे। किसी हिंसक या कसाई द्वारा किसी मारे जाते हुए जीव को देखो, कि वह कैसा दुःख पाता है, और किस प्रकार तड़फड़ाता एवं चिल्लाता हुआ मरता है।
जैन शास्त्र स्पष्ट कहते हैं कि जो आर्त रौद्र ध्यान करता हुआ मरता है, वह हल्के कर्म को भारी करता है, मन्द रस वाले कर्म को तीव्र रस वाले करता है और अल्प स्थिति के कों को महास्थिति के बनाता है। यथा श्री ज्ञाता सूत्र तथा उपासक दशांग सूत्र में श्रावक का वर्णन है। वहाँ बताया है कि देवता जिन श्रावकों को डिगाने बाया, वहाँ ऐसा बोला है कि जो तू धर्म नहीं छोड़ेगा तो मैं तुझे अमुक २ कष्ट दूंगा। उस कष्ट
और पीड़ा के कारण आर्त रौद्र ध्यान ध्याता हुआ अकाल में जीवित रहित हो जावेगा, तब तेरा धर्म कहाँ रहेगा। इस प्रकार परवश मरने वाला आर्त रौद्र ध्यानवश बहुत कर्म बॉष लेता है। - कर्जा तो श्री गजसुकुमालजी सरीखे महापुरुष जिन्होंने सम्यक् प्रकार कष्ट को सहन किया वही चुकाते हैं, सब जीव नहीं चुकाते। वे तो अधिक कर्जा कर लेते हैं, शास्त्र ने तो ऐसा कहा है। और तेरह-पन्थी कहते हैं कि राजपूत द्वारा मारा जाता हुआ बकरा अपने सिर पर का कर्म रूपी ऋण चुकाता है। हम
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com