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( २७ ) बात है, लेकिन तीनों आदमी अपना अपना व्यवसाय त्यागे बिना ही यदि श्रावक होना चाहें, तो तेरह-पन्थी किसको तो श्रावक बनावेंगे और किसको न बनावेंगे? क्योंकि उनकी दृष्टि में तो सब जीव समान हैं । इसलिए बकरे द्वारा आजीविका करने वाले को ही अपना श्रावक बनाना चाहिये, दूसरों को नहीं। ऐसा होते हुए भी यदि वे बकरे द्वारा भाजीविका करने वाले को अपना श्रावक नहीं बनाते हैं, तो फिर यह किस बिना पर कहते हैं, कि एकेन्द्रिय
और पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा समान है ? अथवा एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा समान है, अथवा एकेन्द्रिय को मारकर पंचेन्द्रिय का पोषण करना पाप हैं।
नवी दलील सुनिये । जैन शास्त्रों में त्रस-पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वाले को नरक जाना कहा है, परन्तु क्या कहीं यह भी कहा है कि स्थावर जीव की हिंसा के पाप से कोई नरक में गया १ तेरह-पन्थियों से ही प्रश्न किया जावे कि एक आदमी नित्य सवा सेर आलू खाता है और प्रत्येक आलू में अनन्त २ जीव हैं। इसके सिवाय वह और कोई पाप नहीं करता। लेकिन दूसरा आदमी जमीकन्द या लीलोत्री को छूता भी नहीं है, परन्तु उसने जीवन भर में केवल एक मनुष्य, गाय, बकरे या साँप को मार डाला है। तो आपके सिद्धान्तानुसार नरक में कौन जावेगा? और यदि दोनों ही नरक जावेंगे तो अधिक स्थिति किसकी होगी.?
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