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( २६ ) आठवीं दलील सुनिये ! मान लीजिये कि तेरह-पन्थी साधु के पास तीन आदमी आये और कहने लगे कि हम आपके श्रावक होना चाहते हैं : उन तीनों में से एक आदमी ने कहा कि महाराज! आप इन दो आदमियों को अपना श्रावक मत बनाइये । ये लोग महान हिंसक हैं। ये लोग जब महान् हिंसा त्याग कर मेरो तरह अल्प हिंसा से आजोविका करें, तब इनको श्रावक बनाइयेगा। देखिये, इनमें से यह एक आदमी तो गेहूँ और बाजरा पीस कर बाटा बेचता है। गेहूँ और बाजरे के प्रत्येक दाने में एक एक जीव है, इसलिए यह नित्य प्रति असंख्य जीवों का संहार करता है। यह दूसरा आदमी दिन भर तरबूज काट काट कर बेंचता रहता है। वनस्पति में असंख्य २ जीव हैं, इसलिए यह नित्य प्रति असंख्य जीवों की हिंसा करता है। लेकिन मैं दिन भर में केवल एक बकरा, पैसे देकर दूसरों से कटवाता हूँ और उसका गोश्त बेंच लेता हूँ। इस प्रकार मैं, एक ही जीव की हिंसा से अपनी आजीविका करता हूँ और वह हिंसा भी स्वयं नहीं करता, किन्तु दूसरे से करवाता हूँ, तथा मैं गोश्त भी नहीं खाता हूँ। इसलिए आप मुझे हो श्रावक बना डीजिये। - तेरह-पन्थी साधु किसे अपना श्रावक बनावेंगे और किसे न बनावेंगे १ बकरे की हिंसा त्याग देने पर श्रावक बनाना दूसरी
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