________________
( २४ ) अधिक है और एक त्रस जीव की समानता में असंख्य ही नहीं, बल्कि अनन्त स्थावर जीव भी नहीं हो सकते ।
सातवीं दलील देखिये ! तेरह-पन्थी लोग एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय को समान तो बताते हैं, लेकिन वे अपने इस सिद्धान्त पर टिक नहीं सकते। मनुष्य जीवन-निर्वाह के लिए नित्य असंख्य और अनन्त एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा करते हैं। अन्न में भी जीव हैं, पानी में भी जीव हैं, वनस्पति में भी जीव हैं और अमि बादि में भी। मनुष्य के जीवन-निर्वाह के लिए इस प्रकार की हिंसा अनिवार्य मानी जाती है । कदाचित् कोई व्यक्ति तेरहपन्थियों के सिद्धान्त पर विचार करे और सोचे कि बाजरे, गेहूँ या मोठ के एक एक दाने में भी एक एक जीव है और साग तरकारी में तो असंख्य या अनन्त जीव हैं, लेकिन एक बकरे में एक हो जीव है, फिर जब एक ही जीव की हिंसा से मेरा काम चल सकता हो, तो गेहूँ, बाजरे, मोठ या साग के असंख्य जीवों की हिंसा क्यों की जावे ? इस तरह इनके सिद्धान्त को कोई इस रूप ब्यवहार में लाने लगे और गेहूँ, बाजरा, मोठ और साग के अनन्त जीवों की हिंसा से बचकर एक ही बकरे की हिंसा से अपना काम चलाने लगे, तो क्या यह ठीक होगा ? कदाचित तेरह-पन्थो कहें कि मॉस-भक्षण निषिद्ध है, तो हम उनसे कहेंगे, कि माँस भी जीव का कलेवर है और गेहूँ का बाटा भी जीवों
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com