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( १७ ) और सुनिये! आप रजो-हरण क्यों रखते हैं ? पैर के नीचे कोई त्रस जीव भाकर दब न जावे, इसीलिए या और किसी कार्य के लिए ? परन्तु रजोहरण हिलाने में वायुकायिक जीवों की हिंसा होती है या नहीं? असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा करके तब कहीं आप थोड़े से त्रस जीवों को बचा पाते हैं । ऐसी दशा में एकेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा त्रस जीवों का महत्व अधिक रहा य नहीं १ त्रस जीवों की रक्षा के लिए एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा की गई या नहीं ? ही है। सोहनलालजी के बाप दादा तेरह-पन्थी श्रावक थे, इसी से सोहनलालजी भी तेरह-पन्थी श्रावक कहलाते थे, परन्तु वास्तव में तेरह पन्थ के सिद्धान्त क्या और कैसे हैं ? यह उनको पता न था। लोगों ने सोहनलालजी से कहा कि आप हम पर नाराज़ मत होइए; किन्तु तेरह-पन्थ सम्प्रदाय के आचार्य, पूज्य श्री कालूरामजी महाराज यहीं विराजते हैं, उन्हीं से जाकर पूछ लीजिये । सोहनलालजी बरडिया उसो समय श्री कालूरामजी महाराज के पास गये। उन्होंने श्री कालूरामजी महाराज को समस्त घटना कह सुनाई और प्रश्न किया कि केरड़ो के बचा देने से मुझे धर्म हुआ या पुण्य अथवा पाप हुआ ! श्री कालरामजी महाराज ने कहा कि न धर्म हुआ, न पुण्य हुआ, किन्तु पाप हुआ। सोहनलालजी ने कहा कि ऐसा क्यों? मैंने उस केरदी को कोई दुःख तो दिया ही नहीं है, फिर मुझे पाप क्यों हुआ? श्री कालूरामजी ने कहा कि वह केरड़ी जिसे तुमने बचाई है, खायेगी, पीयेगी, जिसमें असंख्य जीवों की हिंसा होगी, फिर वह मैथुन का पाप करेगी, उसकी सन्तान होगी, वह भी खायेगी, पियेगी और मैथुनादि पाप
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