________________
( १६ )
होने वाली हिंसा का पाप आपको लग सकता है, और आप उस पाप से बचने के लिए ही असंख्य वायुकायिक जीवों की हिंसा करते हैं, और अपना पाप टालने के लिए श्रपने जिस जीव को बचाया है, उसके बचने का पाप आपको नहीं लगा, तो क्या आप गृहस्थ के लिए भी ऐसा मानते हैं ? मान लीजिये कि एक गृहस्थ ने एक कुश्राँ खुदवाया । उस कुएँ में एक गाय गिर गई। गृहस्थ ने उस गाय को कुएँ में से निकाल कर अपना पाप टाला और उसकी रक्षा की; तो आपके सिद्धान्तानुसार उस गृहस्थ को कोई पाप तो नहीं हुआ ? यदि पाप हुआ, तो आपने प्रतिलेखन द्वारा जिन जीवों को बचाया, उन जीवों के बचने से आपको पाप क्यों नहीं हुआ ?
* सरदार शहर में सोहनलालजी बरड़िया नाम के एक सज्जन हैं जो कट्टर तेरह - पन्थी श्रावक थे । सन् १९२८-२९ के लगभग वे अपना एक मकान बनवा रहे थे। मकान बनाने के लिए पानी भरने के वास्ते उन्होंने मकान के सामने एक हौज़ बनवाया था । उस हौज़ में पानी भरा हुआ था । एक बछिया ( गाय की बछड़ी ) उस हौज़ में गिर गई और तड़फड़ाने लगी । सोहनलालजी भी वहाँ पर मौजूद थे। उन्होंने स्वयं अपने मज़दूरों की सहायता से उस बछिया को निकाल दिया । कुछ दूसरे लोग जो तेरह-पन्थी नहीं थे, वहाँ पर मौजूद थे । उन्होंने सोहनलालजी से कहा कि आपके धर्मानुसार तो आपका बछिया को निकाल देने का कार्य पाप हुआ । सोहनलालजी ने कहा कि पाप क्यों हुआ ? मैंने बछिया को कष्ट तो दिया ही नहीं है, बल्कि कष्ट से बचाया
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com