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हरीतक्यादिनिघंटे फरोग और कासरोगको हरनेवाला है और स्वरकों अच्छा करनेवाला है, तथा लचाकोंभी अच्छी करनेवाला कहा है, और रुचिकों करनेवाला, हृदय, कंठ, और मुख इनका शोधन करनेवाला होता है ॥ १०५ ॥
अपरासुगंधानामगुणाः. स्थूलग्रंथिः सुगन्धा स्यात् ततोहीनगुणा स्मृता। टीका-मोठीगांठवाली वच सुगंध होती है और उस्से हीनगुणवाली होती है.
अथ वचा(चोवचीनी)नामगुणाः. द्वीपान्तरवचा किञ्चितिक्तोष्णा वह्निदीप्तिकत् ॥ १०६॥ विबंधाध्मानशूलनी शकन्मूत्रविशोधिनी। वातव्याधिमपस्मारमुन्मादं तनुवेदनाम् ॥ १०७ ॥
व्यपोहति विशेषेण फिरङ्गामयनाशिनी । टीका-अब चोवचीनीके नाम तथा गुण लिखते हैं. अन्य द्वीपकी वचकों इसदेशमें चोवचीनी कहते हैं. ये चोवचीनी किंचित् तिक्त और उष्ण होती है, और अग्निकों दीपन करती है ॥ १०६॥ कविजियत अफरा और शूल इनको हरनेवाली है, तथा मल और मूत्रका शोधन करनेवाली है. और वातरोगोंकों, मृगीकों, उन्मादरोगकों, समस्त शरीरकी पीडाकों शमन करती है ॥ १०७ ॥ और अधिककरके फिरंगरोगका नाश करनेवाली है..
अथ हपुषानामगुणाः. तन्मध्ये प्रथमं फलं मत्स्यसदृशं विस्त्रगन्धं द्वितीयमश्वत्थफलदृशं मत्स्यगंधं तयोर्नामानि गुणाश्च. हपुषा पुष्पवत्सा च पराश्वत्थफला मता ॥ १०८॥ मत्स्यगंधा प्लीहहन्त्री विषघ्नी ध्वांक्षनाशिनी। .. हपुषा दीपनी तिक्ता मृदूष्णा तुवरा गुरुः ॥ १०९ ॥ पित्तोदरसमीरार्थीग्रहणीगुल्मशूलहृत् । पराप्येतद्गुणा प्रोक्ता रूपभेदी द्वयोरपि ॥ ११०॥
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