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हरीतक्यादिनिघंटे
ऊची कफप्रदा बल्या लघ्वी पित्तानिलापहा । अर्धस्विन्नास्तु गोधूमा अन्येऽपि चणकादयः ॥ १७६ ॥ कुल्माषा इति कथ्यन्ते शब्दशास्त्रेषु पण्डितैः । कुल्माषा गुरवो रूक्षा वातला भिन्नवर्चसः ॥ १७७ ॥ पललं तु समाख्यातं सैक्षवं तिलपिष्टकम् | पललं मलकहृष्यं वातघ्नं कफपित्तकृत् ॥ १७८ ॥ बृंहणं च गुरु स्निग्धं मूत्राधिक्यनिवर्त्तकम् । तिलकि तु पिण्याकं तथा तिलखलिः स्मृता ॥ १७९ ॥ पिण्याको लेखनो रूक्षो विष्टम्भी दृष्टिदूषणः । तण्डुलो मेहजन्तुनः सनवस्त्वतिदुर्जरः ॥ १८० ॥ इति श्रीहरितक्यादिनिघंटे कृत्तान्नवर्गः समाप्तेः ।
टीका - अनन्तर चिडवा छिलकेवाले धानभी ले और भूनेहुवे अस्फुटित कूटेचिपिट हैं ॥ १७१ ॥ वे पृथुकभी कहें हैं चिडवा भारी वातरता भी कहा है और दूधके सहित पुष्ट शुक्रकों करनेवाले बल करनेवाले ॥ १७२ ॥ मलकों अलग करनेवाले हैं आधे पकेहुवे शिम्बीधान्य तृणसें भूनेहुवकों होल कहाहै ॥ १७३ ॥ होल अल्पवात मेद कफ त्रिदोष इनको हरता है जिसका होला होता है वोह उसके गुणवाला होताहै ॥ १७४ ॥ जब गेहूंकों जो अधपकीवाले होती हैं तृणानिसें भूनीहुई उसकों विद्वानोंनें ऊची ऐसा कहा है ॥ १७५ ॥ लोकमें उमिया इसप्रकार कहते हैं ऊची कफकों करनेवाली बलकेहित हलकी पित्तवातकों हरती है आधे पकायेहुवे गेहूं और चने आदिका ॥ १७६ ॥ व्याकरणके पंडितोंनें इसकों कुल्माष ऐसा कहा है कुल्माष भारी रूखे वातकों करनेवाले मलकों अलग करनेवाले हैं अनन्तर तिलकुट || १७७ ।। गुडके सहित तिलकी पिट्टीकों पलल कहाँ है पलल मलकारी शुक्रकों करनेवाला वातहरता कफपित्तकों करनेवाला है ॥ १७८ ॥ पुष्ट भारी चिकनी और मूत्राधिक्यकों दूर करनेवाला है अनन्तर खली || १७९ ॥ तिलकिहकों पिण्याक तथा तिलखली कही है खली लेखन रूक्ष विष्टंभी दृष्टिदूषण होती है चावल प्रमेह कृमिकों हरता और नया अतिदुर्जर होता है ॥ १८० ॥
इति हरीतक्यादिनिघंटे कृतान्नवर्गः समाप्तः ।
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