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हरीतक्यादिनिघंटे
कृष्णाया गोर्भवेद्दुग्धं वातहारि गुणाधिकम् ॥ ९ ॥ पीताया हरते पित्तं तथा वातहरं भवेत् । श्लेष्मलं गुरु शुक्ला या रक्तचित्रा च वातहृत् ॥ १० ॥
टीका- -अब दुग्धके नाम और गुण कहते है दुग्ध क्षीर पय स्तन्य वालजीवन यह दूधके नाम हैं दूध मधुर चिकना वातपित्तकों हरता सर ॥ १ ॥ तत्काल शुaat करनेवाला शीतल सब प्राणियोंकों सत्म्य होता है जीवन पुष्ट बलकों करनेवाला परम वाजिकर ॥ २ ॥ वयस्थापन वायुकों करनेवाला सन्धिकारी रसायन है और विरेक वमन बस्ति इनकों तुल्य आजको बढानेवाला है || ३ || जीर्णज्वर मानसिकरोग शोष मूर्च्छा भ्रम इनमेंभी और संग्रहणी पाण्डुरोग दाह और तृषा इनमें तथा हृद्रोगमें ॥ ४ ॥ शूल उदावर्त्त गुल्म इनमें बस्तिरोग में गुदांकुर में रक्तपित्तमें अतीसार में योनिरोग में श्रममें ममें ॥ ५ ॥ गर्भस्राव में भी हित है ऐसा मुनिवरोनें कहा है बाल वृद्ध क्षतक्षीण क्षुधा मैथुन इनसें जो कृश || ६ || उनकों सदा अतिशयकरके यह हित कहा है गायका दूध विशेषकर के रसपाकर्मे मधुर कहा है ॥ ७ ॥ और शीतल दुग्धकों करनेवाला चिकना वात रक्त पित्त इनको हरता है दोष धातु मल शीत किञ्चित् क्लेदकों करनेवाला भारी ॥ ८ ॥ सदा सेवन करने वालोंके ज्वर और समस्त रोगोंकी शान्ति करनेवाला है अनन्तर वर्णविशेषसें गुणविशेषकों कहेते हैं ॥ ९ ॥ कालीगायका दूध वातहरता गुणमें अधिक है पीलीका दूध पित्तकों हरता है तथा वातहर भी है सुफेद गायका दूध कफकारी भारी और लाल चित्ररंगवालीकाभी बात हरता है ॥ १० ॥
अथ विवत्साया गोः माहिषछागादिदुग्धगुणाः. बालवत्सविवत्सानां गवां दुग्धं त्रिदोषकृत् । बष्कयिण्यास्त्रिदोषघ्नं तर्पणं बलकृत्पयः ॥ ११ ॥ जाङ्गलानूपशैलेषु चरन्तीनां यथोत्तरम् । पयो गुरुतरं स्नेहो यथाहारं प्रवर्तते ॥ १२ ॥ स्वल्पान्नभक्षणाज्जातं क्षीरं गुरु कफप्रदम् । तत्तु बल्यं परं वृष्यं स्वस्थानां गुणदायकम् ॥ १३॥ पलालतृणकार्पासबीजजातं गुणैर्हितम्
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