Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 358
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलसंधानमद्यमधुइक्षुवर्गः। मन्दं यत्स्पन्दते तस्मात्तन्मत्स्यण्डी निगद्यते। मत्स्यण्डी भेदिनी बल्या लघ्वी पित्तानिलापहा ॥ ११३॥ मधुरा बृहणी वृष्या रक्तदोषापहा स्मृता। इक्षो रसो यः सम्पक्को जायते लोष्टवदृढः ॥ ११४ ॥ सगुडो गौडदेशे तु मत्स्यण्डीव गुडो मतः । गुडो वृष्यो गुरुः स्निग्धो वातघ्नो मूत्रशोधनः ॥ ११५॥ नातिपित्तहरो मेदःकफरुमिबलप्रदः। गुडो जीर्णो लघुः पथ्योऽनभिष्यन्यग्निपुष्टिकत् ॥ ११६ ॥ पित्तनो मधुरो वृष्यो वातघ्नोऽसृक्प्रसादनः। टीका-अनन्तर राब उसका लक्षण और गुण ईखका रस पकाहुवा कुछ गाढा बहुत पतला ॥ ११० ॥ वोही ईखके विकारोंमें फाणित नामसे प्रसिद्धहै राव भारी अभिष्यन्दी पुष्ट कफ शुक्रकों करनेवाली ॥ १११॥ वातपित्तश्रमोंको हरती है और मूत्र बस्तिशोधनहै ईखका रस जो पकाहुवा गाढा कुछ पतला ॥ ११२॥ जो थोढा टिघलताहै इसवास्ते उस्कों मत्स्यंडी कहतेहैं मत्स्यडी भेदन वलके हित हलकी पित्तवातकों हरती ॥ ११३ ॥ मधुर पुष्ट शुक्रकों करनेवाली रक्तदोषकों हरती कहींहै ईखका रस जो पकाहुवा ढेलेके माफिक दृढ होताहै ॥११४॥ वोह गुड गौडदेशमें मत्स्यंडीकों गुड कहतेहैं गुड शुक्रकों करनेवाला भारी चिकना वातहरता मूत्रका शोधन करनेवाला ॥ ११५ ॥ न अति पित्तकों हरता भेद कफ कृमि बल इनकों करनेवालाहै अनन्तर पुराने गुडका गुण पुराना गुड हलका पथ्य अनभिष्यन्दी अग्नि पुष्टिको करनेवाला ॥११६ ॥ पित्तहरता मधुर शुक्रकों करनेवाला वातहरता रुधिरको स्वच्छ करनेवालाहै ॥ । अथ नवीनगुडस्य शर्करायाश्च गुणाः. गुडो नवः कफश्वासकासमिकरोऽग्निरुत् ॥ ११७॥ श्लेष्माणमाशु विनिहन्ति सदाकेण पित्तं निहन्ति च तदेव हरीतकीभिः ॥शुण्ठ्या समं हरति वातमशेषमित्थं दोषत्रयक्षयकराय नमो गुडाय ॥ ११८॥ For Private and Personal Use Only

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