Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 367
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे चलविभीतके ॥ इंद्रियं कर्षपद्माक्षशकटेन्द्रियपाशके ॥१॥ काकारख्यः काकमाची च काकोली काकणन्तिका ॥ काकजङ्गा काकनासा काकोदुम्बरिकापि च ॥ २॥ सप्तस्वर्थेषु कथितः काकशब्दो विचक्षणैः ॥ सर्पद्विरदमेषेषु सीसके नागकेसरे ॥३॥ नागवल्यां नागदन्त्यां नागशब्दः प्रयुज्यते ॥ मांसे द्रवे चक्षुरसे पारदे मधुरादिषु ॥ बालरोगे विषे नीरे रसो नवसु वर्तते ॥ ४॥ इति श्रीहरीतक्यादिनिघंटः समाप्तः॥ टीका-अनन्तर बहुत अर्थवाले नाम अक्षशब्द आठमें कहाहै सौचल बहेडा इन्द्रिय वासा और ककास काकामाची काकोली गुञ्जा काकजंघा कौव्वा ठोठी कठिया गूलर सात अर्थों में काशशब्द बुद्धिवानोंने कहेहैं साप गज मेंढा सीसा नागकेसर नागवला नागदन्ती इनमें नागशब्द कहाहै मांसमें द्रव वस्तु ईखके रसमें पारेमें मधुरादिकमें बालरोगमें जलमें इन नवोंमें रसशब्दहै. इति हरीतक्यादिनिघंटकी भाषाटीका समाप्ता । से समाप्तोयं ग्रंथः - - - - - समाजामाजमाछालामाल MPTIPPINIYA For Private and Personal Use Only

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