Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२०
हरीतक्यादिनिघंटे शीतवीर्यविषालक्ष्मीपापपित्तानिलापहम् । अल्पाभिष्यन्दिकान्त्योजस्तेजोलावण्यबुद्धिकत् ॥ ९६ ॥ स्वरस्मृतिकरं मेध्यमायुष्यं बलकद्गुर । उदावर्तज्वरोन्मादशूलानाव्रणान् हरेत् ॥ ९७॥ स्निग्धं कफकरं रक्षःक्षयवीसर्परक्तनुत् ।। टीका-अनन्तर घृतवर्गः उसमें घृतके नाम और गुण कहताहै घृत आज्य हवि सर्पि यह घृतके नाम हैं और रसायन मधुर नेत्रके हित अग्निदीपन ॥ ९५ ॥ शीतवीर्यहै और विष अलक्ष्मी पाप पित्त वात इनकों हरताहै थोडा अभिष्यन्दी कान्ति ओज तेज लावण्य बुद्धि इनकों करनेवाला ॥ ९६ ॥ स्वर स्मृतिको करनेवाला मेध्य आयुके हित बलकों करनेवाला भारी उदावर्त ज्वर उन्माद शूल अफरा व्रण इनकों हरताहै ॥ ९७ ॥ चिकना कफको करनेवाला रक्ष क्षय वीसर्प रक्त इनकों हरताहै ॥
___ अथ माहिषछागोष्ट्रीघृतमुणाः. गव्यं घृतं विशेषेण चक्षुष्यं वृष्यमग्निरुत् ॥ ९८॥ स्वादु पाककरं शीतं वातपित्तकफापहम् । मेधालावण्यकान्त्योजस्तेजोवृद्धिकरं परम् ॥ ९९ ॥ अलक्ष्मीपापरक्षोघ्नं वायसः स्थापकं गुरु । बल्यं पवित्रमायुष्यं सुमङ्गल्यं रसायनम् ॥ १० ॥ सुगन्धं रोचकं चारु सर्वाज्येषु गुणाधिकम् । माहिषं तु घृतं स्वादु पित्तरतानिलापहम् ॥ १०१ ॥ शीतलं श्लेष्मलं वृष्यं गुरु स्वादु निपच्यते । आजमाज्यं करोत्यग्निं चक्षुष्यं बलवर्धनम् ॥ १०२ ॥ कासे श्वासे क्षये चापि हितं पाके भवेत्कटु ।
औष्ट्रं कटु घृतं पाके शोषक्रिमिविषापहम् ॥ १०३ ॥ दीपनं कफवातघ्नं कुष्टगुल्मोदरापहम् ।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370