Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 351
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ हरीतक्यादिनिघंटे उत्पन्न है मधु शीतल हलका मधुर रूखा काविज लेखन नेत्रके हित दीपन स्वरकों अच्छा करनेवाला व्रणशोधन रोपण ॥ ६४ ॥ सुकुमारताकों करनेवाला सूक्ष्म अत्यन्त सोतोंका शोधन पीछेसें कसेला हर्षकों देनेवाला और परम स्वच्छताकों करनेवाला || ६५ ॥ वर्णके हित कान्तिको करनेवाला शुक्रकों करनेवाला विशद रोचहै और कुष्ठ बवासीर कास रक्तपित्त कफ प्रमेह क्रम कृमि इनकों ॥ ६६ ॥ और मेद तृषा वमन श्वास हिचकी अतीसार मलग्रह इनकों तथा दाह क्षत क्षय इनकोंभी दूर करता है और योगवाही अल्प वातकों करनेवाला है || ६७ || अब मधुके भेदों कहते है माक्षिक भ्रामर क्षौद्र पैत्तिक छात्र आर्घ्य औद्दालक और दाल इसप्रकार आठ मधुकी जाती है ॥ ६८ ॥ अथ माक्षिक भ्रामरक्षौद्रगुणाः, माक्षिकाः पङ्गवर्णास्तु महत्यो मधुमक्षिकाः । ताभिः कृतं तैलवर्णं माक्षिकं परिकीर्त्तितम् ॥ ६९ ॥ माक्षिकं मधुषु श्रेष्ठं नेत्रामयहरं लघु । कामलार्शःक्षतश्वासकासक्षयविनाशनम् ॥ ७० ॥ किञ्चित्सूक्ष्मैः प्रसिद्धेभ्यः षट्पदेभ्योलिभिश्चितम् । निर्मलं स्फटिकाभं यत्तन्मधु भ्रामरं स्मृतम् ॥ ७१ ॥ भ्रामरं रक्तपित्तघ्नं मूत्रजाड्यकरं गुरु । स्वादुपाकमभिष्यन्दी विशेषात्पिच्छिलं हिमम् ॥ ७२ ॥ मक्षिकाः कपिलाः सूक्ष्माः क्षुद्राख्यास्तत्कृतं मधु । मुनिभिः क्षौद्रमित्युक्तं तद्वर्णात्कपिलं भवेत् । गुणैर्माक्षिकवत्क्षौद्रं विशेषान्मेहनाशनम् ॥ ७३ ॥ टीका - उस्में माक्षिकका लक्षण माक्षिक पिङ्गवर्ण बडी मधु मख्खी होती है उनसें कियाहुवा वा तेलके समान वर्ण ऐसेकों माक्षिक कहा है ॥ ६९ ॥ माक्षिक मधु श्रेष्ठ नेत्ररोगों हरता हलका होता है और कामला ववासीर क्षत श्वास कास क्षय इनकों हरता है ॥ ७० ॥ अनन्तर भ्रामरका लक्षण और गुण किंचित सूक्ष्म प्रसि षट्पद भँवरा संग्रह कियाहुवा निर्मल स्फटिकके समान जो होता है उसकों भ्रामर कहते हैं || ७१ || भ्रामर रक्तपित्तकों हरता मूत्र जडता इनको करनेवाला भारी For Private and Personal Use Only

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