Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 331
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ हरीतक्यादिनिघंटे पित्तानिलापहं सर्वधात्वग्निबलवर्धनम् । असारं दधि संग्राहि शीतलं वातलं लघु ॥६०॥ विष्टम्भि दीपनं रुज्यं ग्रहणीरोगनाशनम् । गालितं दधि सुस्निग्धं वातघ्नं कफकद्गुरु ॥६१॥ बलपुष्टिकरं रुच्यं मधुरं नातिपित्तरुत् । टीका-गायके दहीका गुण गायका दही विशेषकरके मधुर अम्ल रुचिकों करनेवाला पवित्र दीपन हृद्य पुष्टिकों करनेवाला वातकों हरता है॥५६ । सब दहीयोंके बीचमें गायका दही गुणमें अधिक कहा है मैंसका दही बहुत चिकना कफकों करनेवाला वातपित्तकों हरता॥५७॥ पाकमें मधुर अभिष्यन्दी शुक्रकों करनेवाला भारी रक्तदूषक होता है बकरीके दहीका गुण बकरीका दही बहुत उत्तम काविन हलका तीनों दोषोंकों हरता है ॥५८॥ और श्वास कास ववासीर क्षय कार्श इनमें प्रशस्त है तथा दीपन होता है औटाये हुवे दूधके दहीका गुण पकेहुवे दूधका दही रुचिकों करनेवाला चिकना गुणमें अच्छा ॥ ५९॥ पित्त वातकों हरता और सब धातु अनि बल इनको बढानेवाला है असारदही काविज शीतल वातकों करनेवाला हलका ॥६० ॥ विष्टंभी दीपन रुचिको करनेवाला ग्रहणीरोगकों हरता है निचोडा हुई दहीका गुण निचोडी दही बहुत चिकना वातहरता कफको करनेवाला भारी ॥६१ ॥ बल पुष्टिको करनेवाला रुचिकर मधुर और अति पित्त करनेवाला है ॥ अथ शर्करायुक्तदधिगुणाः दध्नो रात्रोनिषेधश्च. सशर्करं दधि श्रेष्ठं तृष्णापित्तास्त्रदाहजित् ॥ ६२ ॥ सगुडं वातनुद्राही बृंहणं तर्पणं गुरु । न नक्तं दधि भुञ्जीत न चाप्यघृतशर्करम् ॥ ६३॥ नामुद्गसूपं नाक्षौद्रं नोष्णं नामलकैर्विना । शस्यते दधि नो रात्रौ शस्तं चाम्बु घृतान्वितम् ॥ ६४ ॥ रक्तपित्तकफोत्थेषु विकारेषु तु नैव तत् । हेमन्ते शिशिरे चापि वर्षासु दधि शस्यते ॥ ६५॥ For Private and Personal Use Only

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