Book Title: Harit Kyadi Nighant
Author(s): Rangilal Pandit, Jagannath Shastri
Publisher: Hariprasad Bhagirath Gaudvanshiya

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Page 319
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अरुचिग्रहणीगुल्मश्वासकासेषु विद्रधौ ॥ ७० ॥ हिकायां स्नेहपाने च शीताम्बु परिवर्जयेत् । अरोचके प्रतिश्याये मन्देऽग्नौ श्वयथौ क्षये ॥७१ ॥ मुखप्रसेके जठरे कुष्ठे नेत्रामये ज्वरे । व्रणे च मधुमेहे च पिबेत्पानीयमल्पकम् ॥७२॥ जीवानां जीवनं जीवो जगत्सर्वं तु तन्मयम् । अतोऽत्यन्तनिषेधेन कदाचिद्वारि वार्यते ॥७३॥ तृष्णा गरीयसी घोरा सद्यः प्राणविनाशिनी । तस्माद्देयं तृषार्ताय पानीयं प्राणधारणम् ॥७४॥ तृषितो मोहमायाति मोहात्प्राणान् विमुञ्चति । अतः सर्वास्ववस्थासु न कचिद्वारि वर्जयेत् ॥७५ ॥ टीका-पार्थशूलमें प्रतिश्यायमें वातरोगमें गलग्रहमें ।। ६९ ॥ आध्मानमें स्तिमितकोष्ठमें सद्यःशुद्धिमें नवज्वरमें और अरुचि संग्रहणी वायगोला श्वास कास इनमें विद्रधि ॥ ७० ॥ हिचकीमें स्नेहपानमेंभी शीतलजल त्यागदेवै अरुचि प्रतिश्याय मन्दामि सूजन क्षय ॥ ७१ ॥ मुखप्रसेक उदररोग कुष्ठ नेत्ररोग ज्वर व्रणमें मधुर प्रमेहमेंभी थोडा जल पीवै ॥ ७२ ॥ जलपीनेकी अवश्यता जल प्राणियोंका पाणहै और सम्पूर्ण जगत तन्मयहै इसवास्ते अत्यन्त निषेधनमेंभी जल कदाचितभी मना नहींहै ॥ ७३ ॥ हारीतने कहाहै बडी तृषा घोर सद्यः प्राणकों हरनेवालीहै इसवास्ते तृषासें पीडितके अर्थ जल प्राणधारण है ॥ ७४ ॥ प्यास मोहकों प्राप्त होताहै मोहसें प्राणीको छोडदेतेहै इसवास्ते सब अवस्थामें कहींपर जलकों न त्यागदेवै ॥ ७॥ अथ प्रशस्तनिंदितजलविचारोनिंदितशुद्धीकरणंच. अगन्धमव्यक्तरसं सुशीतं तर्षनाशनम् । अछं लघु च हृद्यं च तोयं गुणवदुच्यते ॥७६ ॥ पिच्छिलं कृमिलं किन्नं पर्णशैवालकर्दमैः। विवर्णं विरसं सान्द्रं दुर्गन्धं निहितं जलम् ॥ ७७ ॥ For Private and Personal Use Only

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